نبذة مختصرة : सारांश स्वामी विवेकानंद जी वैश्विक पटल पर सदैव युगदृष्टा तथा युगसृष्टा के रूप में जाने जाते हैं। ऐसे भारतीय चिंतक जिन्होंने मानव जाति को सदैव तमस के गर्त से निकालकर प्रकाश के मार्ग पर अग्रसर होने हेतु प्रेरित किया। स्वामी जी मानव निर्माण के लिए एक दिव्य पुंज की तरह सदा प्रकाशमान रहेंगे। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में स्वामी जी के विचार मानव जीवन में प्रेरणा स्रोत की तरह ओजवान हैं जो कि मानव को अनैतिकता के भंवर से निकालकर उसके जीवन में आध्यात्मिक तथा नैतिक प्रकाश को बिखेरता है। स्वामी विवेकानंद इस युग के प्रथम विचारक हैं जिन्होंने हम सभी को अपने देश की आध्यात्मिक, नैतिक, चारित्रिक श्रेष्ठता से अवगत कराया और साथ ही साथ पाश्चात्य देशों की भी अपने भारत देश की भौतिक श्रेष्ठता से परिचित कराया। स्वामी जी को भविष्य तथा वर्तमान के मध्य की एक फलदायी संयोजक कड़ी के रूप में माना जा सकता है। स्वामी जी एक ऐसे विचारक थे जिन्होंने सदैव मानव निर्माणकारी शिक्षा की वकालत की है। उनका कहना था कि शिक्षा ऐसी हो जो मनुष्य को उसके जीवन संघर्षों के लिए तैयार करे तथा उसमें अपार संभावनाओं हेतु साहस भर दे। जिससे वह जीवन की अनगिनत चुनौतियों का पूरे सकारात्मक भाव से डटकर सामना कर सके। उनके अनुसार मानव निर्माणकारी शिक्षा के साथ-साथ उसमें मानवीय गुणों, साहस, धैर्य, आत्मविश्वास, व्यावसायिक कुशलता, अंतर्निहित पूर्णता आदि का अद्भुत समावेश भी होना चाहिए। शिक्षा वह शक्तिशाली हथियार है, जिससे मनुष्य का पुनर्निर्माण किया जा सकता है। स्वामी जी कहते हैं मनुष्य ऐसा हो जिसमें अदम्य साहस, उत्कृष्ट इच्छाशक्ति तथा मनुष्य को ईश्वर का मंदिर बनाने की क्षमता विद्यमान हो। स्वामी विवेकानंद जी के विचारों में मनुष्यता का मूल समाहित है। इनका मानना था कि सभी मानवों में ईश्वर का अस्तित्व है, इसीलिए प्रत्येक मानव ईश्वर की एक अद्भुत रचना है। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने भी इनके विषय में कहा है कि यदि आप भारत को जानना चाहते हैं, तो विवेकानंद जी का अध्ययन कीजिए। उनमें सभी कुछ सकारात्मक है, नकारात्मक कुछ भी नहीं। आधुनिक युग की मांग को ध्यान में रखते हुए स्वामी जी ने कहा था कि “खाली पेट धर्म नहीं होता है।“ मानव को शिक्षा प्रदान करने हेतु शिक्षा का स्वरूप कैसा हो ? प्राचीन शिक्षा वर्तमान समय में कैसे उपयोगी हो सकती है? प्रस्तुत शोध पत्र मानव मूल्यों, मानव निर्माण पर आधारित शिक्षा का ...
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